सांसद सुधाकर सिंह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को चुनाव में बूथों पर लाठी से पीटने की बात कही. फिर होने लगी लालू यादव-राबड़ी देवी के जंगलराज और तेल पिलावन लाठी घुमावन की चर्चा.
पटना. बिहार में नाम के लायक कोई सरकार नहीं है और ‘जंगल राज’ कायम है… 5 अगस्त 1997 को पटना हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति वीपी सिंह और न्यायमूर्ति धर्मपाल सिंह की खंडपीठ की यह टिप्पणी बिहार की राजनीति पर बहुत बड़ा ‘घाव’ है. तब का यह ‘जख्म’ हाईकोर्ट सी सख्त टिप्पणी के बाद भी कम नहीं हुआ और इसकी पीड़ा बिहार के आम नागरिक कई बार महसूस करते रहे. हालांकि, 2005 में सत्ता बदली का दौर भी आया और ‘बिहार में जंगल राज’ की चर्चा थोड़ी कम हुई, लेकिन बिहार की प्रमुख राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के सीने पर या नासूर बनकर अब भी मौजूद है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ इसके जिम्मेवार राजद के प्रमुख नेता जैसे-लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, इलियास हुसैन, आरके राणा या फिर जगदानंद सिंह जैसे नेता रहे, बल्कि कई ऐसे नेता रहे हैं जो अपने आचरण और विवादित बयानों के कारण बार-बार इस नासूर को कुरेदने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते. एक बार फिर बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह ने ‘लाठी की बात’ कर ‘तेल पिलावन लाठी घुमावन’ के दौर की याद दिलाने की कोशिश की है. जाहिर तौर पर उपचुनाव का माहौल है और विरोधी बीजेपी जेडीयू ने इसे हाथों-हाथ लपक लिया है. ऐसे में हम आपके समक्ष वह दौर रखना चाहते हैं जिसके बारे में ‘जंगलराज’ और ‘तेल पिलावन लाठी घुमावन’ की बात कही जाती है.
दरअसल, बक्सर जिले के रामगढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है. वहां सुधाकर सिंह के छोटे भाई अजीत सिंह आरजेडी उम्मीदवार हैं. उन्हीं के समर्थन में भाषण देते हुए उन्होंने अपने राजद के कार्यकर्ताओं और समर्थकों से सुधाकर सिंह ने कहा कि इस चुनाव में 2020 के चुनाव वाली गलती नहीं करनी है, उस समय तो सिर्फ तीन जगहों पर बीजेपी वालों को पीटे थे, लेकिन इस बार 300 बूथों पर उनको लाठी से पीटेंगे. सुधाकर सिंह की यही ‘लाठी की बात’ ने बिहार की राजनीति में जबरदस्त उबाल ला दिया है. ‘जंगल राज’ और ‘तेल पिलावन लाठी घुमावन’ की बातें होने लगीं हैं. बीजेपी-जेडीयू समेत पूरा एनडीए कुनबा हमलावर है और राजद को ‘जंगल राज’ वाली पार्टी बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है. जेडीयू-बीजेपी की संयुक्त रूप से कह रही है कि अब बिहार में “लाठीमार शैली’ नहीं चलेगी और 1990 से 2005 वाला दिन नहीं लौटने वाला है. तो आखिर 1990 से 2005 की बीच जंगलराज और ‘तेल पिलावन लाठी घुमावन’ क्यों इतना चर्चा में रहा.
5 अगस्त 1997 को जब पटना हाईकोर्ट ने बिहार की तत्कालीन राबड़ी देवी सरकार पर टिप्पणी करते हुए ‘जंगल राज’ की बात कही थी तो उस समय बिहार के कई इलाकों में अपराध चरम पर थे. सरेआम डॉक्टरों, व्यवसायियों को अपहरण कर लिया जाता था. उस दौर को याद कर लोग आज भी सिहर उठते हैं और कहते हैं कि हमें आज भी ‘जंगल राज’ याद है. बात आगे बढ़ती है और इस कालखंड में कई कांड हुए. शिल्पी गौतम कांड, चंपा विश्वास कांड, डॉक्टर रमेश चंद्रा अपहरण केस, टाटा शो रूम से गाड़ियों के उठवाने के मामले… तमाम तरह के मामले जो हाईलाइट हुए. आरोप तो यह भी लगते रहे कि तब मुख्यमंत्री आवास से अपहरण और फिरौती के मामले डील किये जाते थे. हालांकि, यहां यह भी बता दें कि तब जंगलराज की बात हाईकोर्ट ने दूसरे संदर्भ में की थी जिसकी चर्चा आगे करेंगे, लेकिन यह कुशासन का उदाहरण (पर्याय) बन गया था.
‘जंगलराज’ से ‘तेल पिलावन लाठी घुमावन तक’
दरअसल, 5 अगस्त 1997 को हाई कोर्ट की बिहार में सरकार नहीं होने और ‘जंगलराज’ कायम हो जाने की टिप्पणी को उस दौर में अपराध के लगातार बढ़ते ग्राफ से जोड़ा गया. बता दें कि उस दौर में बिहार में बाहुबलियों का दबदबा हो गया था. हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद भी ‘जंगल राज’ का दौर लोगों को परेशान करता रहा. हाईकोर्ट की ये टिप्पणी के बाद जब बिहार में जब भी कोई अपराध होते हैं तो पटना हाईकोर्ट की ये टिप्पणी लोग तुरंत बोलने लगते हैं. खैर जंगलराज का दौर आगे बढ़ता रहा और बात ‘तेल पिलावन लाठी घुमावन’ तक पहुंच गई.
पटना की सड़कों पर दिखी थी ‘जंगलराज’ की तस्वीर
अब बात जंगल राज की जीती जाती तस्वीर की. 30 अप्रैल 2003 का वह समय था तब जंगल राज पटना की सड़कों पर लोगों ने अपनी आंखों से देखा था. ऐसी तारीख को लालू प्रसाद यादव ने “तेल पिलावन लाठी घुमावन रैली’ आयोजित की थी और इसी दिन दानापुर थाने के जमालुद्दीन चौक के पास पूर्व विधायक आशा देवी के पति भाजपा नेता सत्यनारायण सिंह की सरेआम हत्या कर दी गई थी. आरोपी तत्कालीन कम लालू प्रसाद यादव के करीबी रीतलाल यादव थे. हालांकि, रीतलाल यादव को उस हत्याकांड से बीते मई में ही बरी कर दिया गया है, लेकिन लोग ‘जंगल राज’ का दौर नहीं भूले.
पटना की सड़कों पर उमड़ा हुजूम और मचाया उत्पात
तारीख 30 अप्रैल 2003 थी.. पटना में ‘तेल पिलावन लाठी घुमावन’ रैली का आयोजन राजद की ओर से किया गया था. पटना की ओर पूरे बिहार से लोगों का हुजूम चला आ रहा था.’तेल पिलावन लाठी घुमावन’ रैली के लिए पटना पहुंच रहे जनता दल के समर्थक बेकाबू थे और राजधानी पटना की ओर भारी संख्या में आ रही भीड़ से आम लोग दहशत में थे. पटना की सड़कों पर लाठी हाथों में लिए हुए जनता दल के कार्यकर्ता उत्पात मचा रहे थे. पटना के कार्यालों में काम करने वालों ने अपने ऑफिस तक बंद कर रखे थे. बाजार की दुकानों के शटर बंद थे और चारो ओर भय का माहौल बन गया था. ऐसा लग रहा था कि कोई खास वर्ग राजधानी पटना पर चढ़ाई करने के इरादे से आया हो.
‘तेल पिलावन लाठी घुमावन’ रैली के दिन हुआ था मर्डर
इसी रैली के लिए बढ़ते लोगों के हुजूम के इसी बीच पटना के खगौल इलाके में सत्यनारायण सिन्हा के मर्डर की खबर ने सनसनी फैला दी. दरअसल, तत्कालीन भाजपा विधायक आशा देवी के पति सत्यनारायण सिन्हा अपनी निजी गाड़ी से कहीं जा रहे थे. इसी दौरान दिनदहाड़े कुछ लोगों ने उनपर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं. घटना राजधानी पटना में खगौल के जमालुद्दीन चौक के पास घटी थी. तब बीजेपी नेता सत्यनारायण सिन्हा की गाड़ी पर दिनदहाड़े हमला किया गया था. उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया था जिसके बाद उनकी मौत हो गई.
पटना हाईकोर्ट ने ‘जंगलराज’ क्यों कहा?
5 अगस्त 1997 को पटना हाईकोर्ट ने कहा…बिहार में नाम के लायक कोई सरकार नहीं है क्योंकि मुट्ठी भर भ्रष्ट नौकरशाह प्रशासन चला रहे हैं न्यायमूर्ति बीपी सिंह और न्यायमूर्ति धर्मपाल सिंह की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता कृष्ण सहाय की दायर एक याचिका पर यह टिप्पणी की थी. खराब नागरिक स्थितियों पर तब यह टिप्पणी की गई थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि यह जंगल राज से भी बदतर है और अदालत के निर्देशों और जनहित का कोई सम्मान नहीं. न्यायाधीशों ने पटना में नागरिक सुविधाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कई नागरिक प्रमुखों और अन्य जिम्मेदार लोगों को जेल भेजा जाना चाहिए. अदालत ने कहा, सामान्य रूप से कई नागरिक एजेंसियों और विशेष रूप से बिस्वास बोर्ड को तुरंत बंद कर दिया जाना चाहिए.
कुशासन का पर्याय बन गया जंगलराज
बिस्वास बोर्ड के वरिष्ठ अधिवक्ता तारकेश्वर दयाल को अदालत ने तब फटकार लगाई जब उन्होंने बोर्ड का बचाव करते हुए आश्वासन दिया कि कल से (6 अगस्त 1997) इसका कामकाज स्पष्ट रूप से दिखाई देगा. न्यायाधीशों ने दयाल की दलील पर कड़ी आपत्ति जताई और चुटकी लेते हुए कहा, बोर्ड वर्षों से क्या कर रहा था जो उसकी निष्क्रियता के कारण नारकीय स्थिति पैदा हो गई. तब राज्य के शहरी विकास सचिव के.एच. सुब्रमण्यम, पटना नगर निगम के प्रशासक, पटना क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण के प्रबंध निदेशक और बिस्वास बोर्ड के प्रमुख अदालत में उपस्थित अधिकारियों में शामिल थे. न्यायाधीशों ने पटना में नागरिक सुविधाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए यह बात कही थी. हालांकि, बाद में यह बिहार में अपराध से जुड़ गया.
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FIRST PUBLISHED : November 9, 2024, 16:48 IST