- गुरु तेग बहादुर सच्चे अर्थों में त्याग बलिदान के प्रति मूर्ति, सच्चे गुरु, बहादुर एवं हिंद दी चादर थे – किरण देव यादव
- औरंगजेब ने इस्लाम स्वीकार न करने पर कटवा दिया था सिर
खगड़िया/अलौली : देश बचाओ अभियान फरकिया मिशन के तत्वाधान में श्री युवक प्रखंड पुस्तकालय के सभागार में गुरु तेग बहादुर का 349 वीं शहादत दिवस मनाया गया। सर्वप्रथम उनके तैल चित्र पर माल्यार्पण पुष्पांजलि समर्पित कर तथा 2 मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई तथा कोटि-कोटि नमन सत सत नमन याद किया गया।
अभियान के संस्थापक अध्यक्ष सह मिशन सुरक्षा परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता किरण देव यादव ने कहा कि गुरु तेग बहादुर सिंह सच्चे अर्थों में बलिदान एवं त्याग के प्रतिमूर्ति, सच्चे गुरु, बहादुर तथा हिंद दी चादर थे।
इनका जन्म 18 अप्रैल 1621 ईस्वी में हुआ था।
गुरु तेग बहादुर का असली नाम त्याग मल था।
उनकी बहादुरी को देखते हुए उनके पिता गुरु हर गोविंद सिंह सिखों के आठवें गुरु ने उन्हें ये नाम दिया था।
गुरुओं में क्रमशः हामिद अंसारी, गुरु तेग बहादुर, केबी हेडगवार, ओवी बिस्मार्क, मिलान कुंदेरा, वंगारी मथाई, अब्दुल कादिर खान, तोशिरो मिफूने, मुरली विजय, अजित वाडेकर, अजित पाल सिंह, तथागत सत्पथी
गुरु तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु हैं।
सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर 24 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार गुरु तेग बहादुर 11 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे। मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को सिर कटवा दिया था। औरंगजेब चाहता था कि सिख गुरु इस्लाम स्वीकार कर लें लेकिन गुरु तेग बहादुर ने इससे इनकार कर दिया था।
गुरु तेग बहादुर के त्याग और बलिदान के लिए उन्हें “हिंद दी चादर” कहा जाता है। मुगल बादशाह ने जिस जगह पर गुरु तेग बहादुर का सिर कटवाया था दिल्ली में उसी जगह पर आज शीशगंज गुरुद्वारा स्थित है। उन्हें “करतारपुर की जंग” में मुगल सेना के खिलाफ अतुलनीय पराक्रम दिखाने के बाद तेग बहादुर नाम मिला। 16 अप्रैल 1664 को वो सिखों को नौवें गुरु बने थे।
गुरु तेग बहादुर की मुगल बादशाह औरंगजेब से अदावत की शुरुआत कश्मीरी पंडितों को लेकर हुई। कश्मीरी पंडित मुगल शासन द्वारा जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। उन्होंने गुरु तेग बहादुर से अपनी रक्षा की गुहार की। गुरु तेग बहादुर ने उन्हें अपनी निगहबानी में ले लिया। मुगल बादशाह इससे बहुत नाराज हुआ।
जुलाई 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने तीन अन्य शिष्यों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुए थे। इतिहासकारों के अनुसार गुरु तेग बहादुर को मुगल फौज ने जुलाई 1875 में गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें करीब तीन-चार महीने तक दूसरी जगहों पर कैद रखने के बाद पिंजड़े में बंद करके दिल्ली लाया गया जो मुगल सल्तनत की राजधानी थी।
माना जाता है कि चार नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर को दिल्ली लाया गया था। मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर से मौत या इस्लाम स्वीकार करने में से एक चुनने के लिए कहा। उन्हें डराने के लिए उनके साथ गिरफ्तार किए गए उनके तीन ब्राह्मणों अनुयायियों का सिर कटवा दिया गया, लेकिन गुरु तेग बहादुर नहीं डरे। उनके साथ गिरफ्तार हुए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गये, भाई दयाल दास को तेल के खौलते कड़ाहे में फेंकवा दिया गया और भाई सति दास को जिंदा जलवा दिया गया।
गुरु तेग बहादुर ने जब इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने उनकी भी हत्या करवा दी। अपनी शहादत से पहले गुरु तेग बहादुर ने आठ जुलाई 1975 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का दसवां गुरु नियक्त कर दिया था।
कार्यक्रम में दानवीर यादव रामचंद्र यादव लालमणि सदा नरेश यादव चंद्र यादव ललन पोद्दार प्रकाश ठाकुर आदि ने शहीदों तेरे अरमानों को मंजिल तक पहुंचाएंगे, शहीद तेग बहादुर अमर रहे, नारों को बुलंद किया।