खगड़िया : भारत की सियासत के मौसम वैज्ञानिक, समाजवादी नेता रहे रामविलास सम्मानित के नाम के पहले कुछ ऐसे ही उपनाम रखे जाते हैं। बिहार के खगड़िया जिले के छोटे से गांव शहाबन्नी से लुटियां (दिल्ली) के बनाए 12 जनपथ तक के सफर में इस बेटे ने कई रिकॉर्ड बनाए
बिहार पुलिस में डीवीडी बनने का सपना देखने के लिए रामविलास पासवान ने कांग्रेस के एक नेता के मजाकिया अंदाज से चुनाव लड़ने की थाना गांव से शहर आए। जिद ऐसी कि सबसे ज्यादा वोट से जीतने का विश्व रिकॉर्ड उनके नाम किया गया।
जिस रामविलास के पास कभी पहने के लिए दो जोड़ी कपड़े नहीं थे, चंदे के पैसे से चुनाव लड़े। उस रामविलास ने देश में दूरसंचार क्रांति लाकर हाजीपुर शहर की तस्वीर बदल दी। सियासत को इस तरह समदा कि हर सरकार में मंत्री बने गए। 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने की उपलब्धि हासिल की। आज उनकी जयंती पर पढ़िए रामविलास सर्वेश की जिंदगी से जुड़े कुछ रोचक किस्से…
कांग्रेस नेता के विटनेस से आहत ड्राइव की जगह विधायक बने
प्रदीप श्रीवास्तव ने लिखा है कि रामविलास समर्पित के राजनीति में प्रवेश की कहानी पर आधारित होना पड़ा। वे जॉइनिंग से पहले अपने दोस्तों के साथ मस्ती में व्यस्त थे। तभी खगड़िया जाने वाली एक ट्रेन में अचानक अपने नाम का मजाकिया अंदाज़ सुना। ऐसा करने वाले कांग्रस नेता मिश्री सदा और उनके साथी थे।
मिश्री सदा 1957 से लगातार कई वर्षों से अलौली विधानसभा से जीतते आ रहे थे। ट्रेन में मिश्री सदा के समर्थक उन्हें बता रहे थे कि इस बार संयुक्त समाजवादी पार्टी अलौली से किसी खास नाम के लड़के को टिकट दे रहा है, जो अभी भी डीवीडी बना हुआ है। कल का लौंडा आपको चुनौती देगा। तब मिश्री सदा ने जवाब दिया था कि चलो पिछले बार 40 हजार से जीते थे। इस बार 80 हजार से जीत जायेंगे।
मिश्री सदा की यही बात रामविलास शोध को ख़ल गई। उन्होंने कहा कि अब वे चुनाव लड़कर ही मनाएंगे। त्राण से उतर कर वे ऊंचे संसदोपा के नेता से मिलने चल दिए। उनकी मुलाकात संसोपा के लक्ष्मीनारायण आर्य से हुई। रामविलास पाठक के पिता उन्हें बचपन से ही शिव पुत्र बुलाते थे।
सर्वेंट की जगह गवर्नमेंट बनने का निर्णय लिया गया
रामविलास ने उनके सामने अपनी मोटी रखी। लक्ष्मीनारायण ने उत्तर देने की जगह से प्रश्न किया, ‘तुम गर्वनमेंट बनना चाहते हो या सर्वेंट?’ इस एक प्रश्न से मन की सारी मूर्खता समाप्त हो गई। तुरंत तय किया राजनीति में आना है। उनके इस फैसले के बाद सबसे बड़ी चिंता उनके पिता को हुई। उन्हें डर सता रहा था कि उनके डीएनए बेटे का पूरा करियर खत्म हो जाएगा।

1966 में जनता को दिशा देते रामविलास राव।
अलौली से ही लड़ा पहला चुनाव
बिहार में मध्य प्रदेश चुनाव की तैयारी चल रही थी। रामविलास पासवान की संसद में मुंगेर संभावित रामजीवन सिंह के पास चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की। पहले रामजीवन चौंके, लेकिन इनके साफगोई से भी प्रभावित हुए। मुंगेर जिले के विधानसभा क्षेत्रों के टिकट बंटवारे को लेकर जब संसोपा के कार्यालय में बैठक हुई तो अलौली क्षेत्र से गहन समीक्षा के बाद टिकट पर फैसला सर्वानुमति से ले लिया गया।

रामविलास प्रसाद के साथ चिराग प्रसाद की तस्वीर।
चंदे के पैसे से कुर्ता सिलवाया, साइकिल से प्रचार किया
रामविलास के बचपन के दोस्त रामलखन साव ने बताया कि उनके डीवीडी बनने से गांव में जश्न का माहौल था। जब चुनाव लड़ने की सूचना मिली तो सभी लोग उन्हें जीतने में लग गए। पासवान के प्रचार के लिए गांव वालों ने मिलकर चंदा जमा किया। उसी पैसे से रामविलास ने कुर्ता-पायजामा सिलाया था। खुद साइकिल से गांव-गांव घूमकर अपना प्रचार करते थे। रामविलास के जिद्द की जीत हुई और पहला चुनाव रामविलास 700 वोट से जीते थे।

पत्नी रीना प्रसाद के साथ रसोई में हाथ बंटाते रामविलास प्रसाद।
पहले कांग्रेस चुनाव में ही जीत का विश्व रिकॉर्ड बनाया गया
चुनाव जीतने के बाद संसोपा ने 1972 के विधानसभा चुनाव में भी अलौली से अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन इस बार ये मिश्री सदा से हार गई। वर्ष 1975 आया। देश में अपराध लगा तो गिरफ्तार कर लिया गया।
जेल से बाहर आने के बाद जनता दल ने उन्हें 1977 के चुनाव में हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया। यहां उन्होंने रिकॉर्ड 4 लाख वोट से जीत कर विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया। उनका नाम गिनीज बुक में दर्ज किया गया।

रामविलास यादव और रामविलास प्रसाद की तस्वीर।
रामविलास के एक वोट से गिर गई थी अटल की सरकार
वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि यह साल 1998 का था। जब कांग्रेस में विश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ तो एक वोट से अटल बिहारी की सरकार गिर गई। वह एक वोट रामविलासपुरी का था, जो भारत के समर्थन से ही कांग्रेस में पहुंचे थे।
इसके बाद जब चुनाव हुआ तो अगली सरकार में वह राष्ट्र में शामिल हो गए। भारत उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ाई और मंत्री भी बन गए। यही कारण है कि लोग फैन्स की राजनीति को अवसरवाद की राजनीति भी कहते हैं।

अजीत सिंह और जॉर्ज फर्नांडीस के साथ रामविलास पासवान।
जब नेता से सुप्रीमो बन गए
साल 2000 आया, रामविलास पासवान अब टिकट के लिए किसी दल के नेता की तलाश की बजाय अपनी पार्टी का सुप्रीमो बनने का फैसला किया। वह अपनी पार्टी बनाई। नाम रखा, लोकजनशक्ति पार्टी। इसके बाद वह कभी पीछे नहीं देखा। केंद्र में एनडीए की सरकार रहे या यूपीए की। वे हर सरकार में मंत्री पद हासिल करते रहे।

रामविलास राव ने सबसे पहले एक निजी कंपनी में नौकरी शुरू की थी।
आरएसएस ने दी राजनीति के मौसम वैज्ञानिक की उपाधि
यही कारण है कि लालू प्रसाद यादव ने उन्हें राजनीति के मौसम की वैज्ञानिक जानकारी दी थी। रामविलास पासवान यह मानते थे कि किस पार्टी या किस गठबंधन में रहना फायदेमंद होगा। वो चुनाव से पहले ही समझ लेते थे। कभी वह एनडीए, कभी यूपीए तो कभी बिहार में नीतीश कुमार या फिर कभी जनरल के साथ हो गए थे।

रामविलास सर्वेश ने डीएसपी की नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश किया।
जानिए अब तक की सबसे बड़ी खबर…
अपने पिता रामविलास के लिए थे ‘शिव पुत्र’
रामविलास पासवान का जन्म बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में 5 जुलाई 1946 को हुआ था। जब वे धन्य हुए, तब उनके पिता जैस्मिन धन्य का जन्म हुआ कि उन्हें भगवान शिव के आशीर्वाद के रूप में प्राप्त हुआ। यही कारण है कि बचपन में वे कई बार ‘शिव पुत्र’ भी कह कर पुकारते थे।
पिता की ख्वाहिश बेटे के सरकारी अधिकारी बनाने की थी। यही कारण है कि स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए गांव से दूर खगड़िया शहर भेज दिया गया। यहां के प्रिंस ऑफ वेल्स स्कूल में उनका एडमिशन हुआ और कल्याण छात्रावास में रहने की व्यवस्था की गई। पहने के लिए दो जोड़ी कपड़े देकर उनके पिता गांव लौट गए।

अपनी पहली पत्नी राजकुमारी देवी के साथ रामविलास सर्वेश की फाइल तस्वीरें
पहली फिल्म राण का पैसे से देखी थी
रामविलास सम्मान की जीवनी ‘रामविलास सम्मान संकल्प, साहस और संघर्ष’ में प्रदीप श्रीवास्तव लिखते हैं कि गांव से शहर पहुंचे रामविलास सम्मान को तब सिनेमा देखने का नया शौक चढ़ा था। लेकिन पास में इतना पैसा नहीं होता कि वे सिनेमा हॉल की टिकट खरीद लें। तब शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने घर से आये राशन का सहारा लिया। जब प्रचलित ‘वस्तु विनिमय प्रणाली’ के तहत वे महीनों के राशन के एक हिस्से को बेचकर पैसा वसूलते थे। इस पैसे से वे सिनेमा हॉल में फिल्म देखने गए थे। सिनेमा हॉल में उन्होंने पहली फिल्म ‘मिस मैरी’ देखी थी।

रामविलास पासवान के बेटे चिराग के साथ एक सभा के दौरान।
उच्च शिक्षा के लिए खगड़िया छोड़ पहुंचे पटना
खगड़िया में हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी कर आगे की पढ़ाई उन्होंने पटना से करने का तय किया। 1965 में पहली बार पटना आये। यहां उन्होंने महेंद्रु स्थित कल्याण छात्रावास को अपना ठिकाना बनाया है। बाद में यहां परेशानी होने पर वे थियोसोफिकल छात्रावास में स्थानांतरित हो गए। इसके बाद 1965 में एलएलबी, फिर 1966 में एमए में अपग्रेड किया गया। दिल्ली से वह अपनी एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में लग गए।

अपनी दूसरी पत्नी रीना और बेटे चिराग के साथ रामविलास।
फ्रॉड कंपनी में मिली थी पहली फिल्म
प्रदीप श्रीवास्तव की जीवनी में लिखा है कि उनके कंधे पर घर की जिम्मेदारी के साथ छोटे भाइयों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी थी। इसलिए राजनीति के बजाय पहले नौकरियां तलाशनी शुरू कर दीजिये। पटना में ही वे एक प्राइवेट फाइनेंस कंपनी की नौकरी मिली, लेकिन इस नौकरी में ज्यादा दिन वे टिक नहीं पाए। चार महीने भी नहीं बीते थे कि पूरी तरह से समझ में आ गया था कि यह एक फ्रैन्ड कंपनी है। वह वहां सेरज दे दिया।

प्रवीण बागी बताते हैं कि 1988 में जब कांग्रेस में विश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ तो एक वोट से अटल बिहारी की सरकार गिर गई। वह एक वोट रामविलास श्रीवास्तव का था
सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गए
हाथ में दूसरी नौकरी नहीं थी, इसलिए फिर सड़क पर आ गए। इस अनुभव के बाद उन्हें लगा कि अगर नौकरी करनी है, तो सरकारी होना चाहिए। फिर उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी।
जब शहरबिन्नी का बेटा डीवीडी बना
इसके बाद शोध ने पुलिस बनने की थाना ली। पहले वे दरोगा की परीक्षा में बैठे। इसकी लिखित परीक्षा तो पास कर ली, पर साक्षात्कार में स्पष्ट नहीं कर सके। हार ने पासवान की हिम्मत नहीं तोड़ा। दारोगा की परीक्षा में फेल होने के बाद, वह तैयारी में जुट गया। इसकी परीक्षा में बैठे और पहले ही प्रयास में पास कर दिया गया। इसकी जांच और साक्षात्कार दोनों पास कर दिए गए। शहरबिन्नी की बेटी डीवीडी बन गई, जब खबर गांव पहुंची तो पूरे गांव में जश्न मनाया। सरकारी नौकरी पाने वाले शोध गांव के पहले लड़के थे।

मां सिया देवी के साथ रामविलासप्रसाद और छोटे भाई रामचंद्रप्रसाद।
बैलगाड़ी से अपनी पत्नी को लेने आए थे रामविलास
देश की राजनीति में इतने लंबे समय तक गुजराती रामविलास सर्वेश की निजी जिंदगी लगभग परदे में ही रही। शोध ने दो शादियां की थी। उनकी पहली शादी बचपन में ही हुई थी। पहली पत्नी राजकुमारी देवी आज भी शहरबन्नी गांव में रामविलास के पवित्र आवास पर रहती हैं। राजकुमारी देवी ने बताया कि जब वह 7 साल की थी, तभी उसकी शादी रामविलास से हुई थी। शादी के 15 साल बाद गौना हुआ और रामविलास राजकुमारी को अपने घर ले जाने के लिए आए थे। उस वक्त वह बैलगाड़ी से अपनी कब्र आई थी।
शादी के कुछ महीने बाद जब रामविलास अपनी दूसरी पत्नी के साथ अपने घर आए तो राजकुमारी से आखिरी बात यही कही कि ‘उन्हें एक लिखी पत्नी चाहिए थी।’ राजकुमारी और रामविलास का आखिरी आमना-सामना 2015 में हुआ था, जब वह अपने पिता की बरसी पर गांव आए थे।

रामविलास यादव और मुलायम सिंह यादव की तस्वीर
हाजीपुर की जीत के बाद हुई थी दूसरी पत्नी से मुलाकात
प्रदीप श्रीवास्तव ने अपनी किताब में रामविलास की दूसरी शादी का जिक्र किया है। हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से 1977 के चुनाव में रिकार्ड मतों से हुई जीत रामविलास के राजनीतिक सफर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। लेकिन यह भी वह समय था, जब राजनीतिक उपलब्धियों के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन में भी हलचल और अप्रत्याशित बदलाव की तैयारी शुरू हो गई थी। इस दौरान उनके परिचय उद्योग भवन में कार्यरत डिप्टी डायरेक्टर गुरुबचन सिंह की इकलौती बेटी अविनाश कौर से हुई। यह परिचय जल्दी ही प्रेम और फिर वैवाहिक बंधन में बदल गया। शोध के साथ शादी करने के बाद अविनाश कौर रीना शोध हो गईं।

पीएम मोदी के साथ रामविलास परवान के बेटे चिराग की तस्वीर।
रामविलास के जाने के बाद टूट गया परिवार
रामविलास ने जाने से पहले अपने बेटे चिराग को राजनीति में स्थापित किया था। उन्होंने चिराग को पहले संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया। फिर अपनी पार्टी का अध्यक्ष भी बनाया गया और फिर धीरे-धीरे सारी कमान चिराग को सौंप दी गई। आज चिराग भी अपने पिता के गुणों के साथ एक कुशल राजनेता बन गए हैं। रामविलास आगे बढ़ गए, लेकिन कभी उन्होंने अपने परिवार को पीछे नहीं छोड़ा। अपने भाइयों और उनके बेटों को भी राजनीति में आगे बढ़ाएंगे। लंबी बीमारी के कारण से रामविलास का 8 अक्टूबर 2020 को निधन हो गया। उनके जाने के बाद परिवार पूरी तरह से बिगड़ गया।

रामविलास सर्वेश कई बार केंद्र में मंत्री भी रहे।
हाजीपुर में रेलवे जोन बनाने में अहम भूमिका
वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी ने बताया कि हाजीपुर में रेलवे जोन कार्यालय रामविलास की ही देन है। वे अपने आप काफी मशक्कत की। जब रामविलास एचडी देवगौड़ा सरकार में रेल मंत्री थे, तब उन्होंने हाजीपुर में इसकी नींव रखी थी।
लेकिन अगली सरकार जो अटल बिहारी वाजपेयी की थी, उसमें ममता बनर्जी को रेल मंत्री बनाया गया। ममता बनर्जी चाहती थीं कि हाजीपुर के रेलवे जोन कार्यालय को पश्चिम बंगाल के मालदा में स्थानांतरित कर दिया जाए।
इसके लिए वह सरकार पर दबाव भी बना रही थी। पर जैसे ही रामविलास को इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने बिहार के सभी विधायकों को बुलाया और इस काम को रोकने की कोशिश की। उनके नेतृत्व में सभी एमपी को एकजुट किया गया और सरकार पर दबाव बनाया गया। फिर हाजीपुर रेलवे का जोनल कार्यालय बना रहा।
