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जिलापटना5वीं के बच्‍चों के ऑनलाइन एग्जाम, VR हेडसेट से लर्निंग:कभी फूस के...

5वीं के बच्‍चों के ऑनलाइन एग्जाम, VR हेडसेट से लर्निंग:कभी फूस के छप्‍पर में बैठते थे, आज स्‍मार्ट TV से पढ़ते हैं बच्‍चे

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बिहार के कैमूर जिले के एक छोटे से गांव तरहनी में एक ऐसा स्कूल है, जहां बच्‍चे क्‍लासरूम में ही दुनियाभर के जानवरों से भरा जू यानी चिड़‍ियाघर घूम आते हैं। पूरे सोलर सिस्‍टम की सैर करते हैं और भागकर चांद को पकड़ लेते हैं। कक्षा 1 से 5वीं तक के ये बच्‍चे मोबाइल पर ऑनलाइन एग्‍जाम देते हैं और इनके रिजल्‍ट भी ऑनलाइन ही जारी होते हैं। ये नजारा न्यू प्राथमिक विद्यालय तरहनी का है, जहां 35 साल के हेडमास्टर सिकेंद्र कुमार सुमन ने पूरे स्‍कूल को डिजिटल टेक्‍नोलॉजी से जोड़ दिया है। सिकेंद्र को शिक्षक दिवस के मौके पर नेशनल अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया है। लोगों के सहयोग से क्‍लास में लगाए स्मार्ट TV
सिकेंद्र कहते हैं, ‘ज्यादातर सरकारी स्कूल सरकार की फंडिंग पर ही पूरी तरह से निर्भर रहते हैं, लेकिन मैं जो बच्चों के लिए करना चाहता था उसके लिए सरकार की फंडिंग काफी नहीं थी। इसलिए सोचा क्यों न आसपास के लोगों और टीचर्स से ही सहयोग लिया जाए। टीचर्स और कुछ पेरेंट्स से पैसे जुटाकर स्‍कूल में स्‍मार्ट TV लगाया। टीचर्स ने अपनी तरफ से पहली से पांचवी तक के बच्चों के लिए स्मार्ट क्लास की शुरुआत की। बिहार के किसी सरकारी स्‍कूल में ऐसा पहली बार हुआ है। इसके अलावा स्कूल में बच्चों की सुरक्षा के लिए CCTV कैमरे भी इंस्टाल कराए गए हैं। बच्चों और टीचर्स को पीरियड खत्म होने और दूसरा पीरियड शुरू होने का इशारा देने के लिए इलेक्ट्रिक स्कूल बेल है। स्‍कूल के कैंपस को बहुत सुंदर डिजाइन किया है जो किसी प्राइवेट स्कूल के किंडरगार्टेन से भी सुंदर दिखता है।’ 5वीं क्लास के सभी बच्चों के पास है ईमेल आईडी
सिकेंद्र कहते हैं, ‘मुझे हमेशा ये लगता था कि किताब और ब्‍लैकबोर्ड की पढ़ाई बच्‍चों के लिए काफी नहीं है। बच्चों को नई टेक्नोलॉजी भी सीखनी जरूरी है। तभी आगे चलकर वो बाकी दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चल पाएंगे। आज हमारे स्‍कूल में 5वीं क्‍लास तक के हर बच्‍चे के पास खुद की ईमेल आईडी है। सभी बच्चे ईमेल बनाना और ईमेल भेजना जानते हैं। हालांकि स्कूल में कंप्यूटर नहीं है, लेकिन कंप्यूटर की सभी चीजें हम बच्‍चों को स्मार्टफोन के जरिए बताते हैं। अब बच्चे अपने घरों से मोबाइल फोन लेकर आते हैं। यहां तक कि कई पेरेंट्स ने अब इसलिए ही फोन खरीदा है ताकि उनके बच्चे फोन के जरिए पढ़ाई कर सकें।’ सिकेंद्र और स्‍कूल के दूसरे टीचर्स लगातार इस कोशिश में लगे रहते हैं कि बच्चों को टेक्नोलॉजी की लत न लगे। सिकेंद्र कहते हैं, ‘हमने गार्जियन को सख्त हिदायत दी है कि बच्चों को मोबाइल फोन तभी दिया जाए जब स्कूल के टीचर्स कहें। साथ ही महीने में सिर्फ एक बार बच्चों को मोबाइल फोन देने के लिए कहा जाता है।’ एग्जाम, रिजल्ट सब ऑनलाइन होते हैं
सिकेंद्र के प्रयासों के बाद अब स्कूल में ऑनलाइन एग्जाम होने लगे हैं। बच्चे फोन पर ही एग्जाम देते हैं और चंद मिनटों में उसका इवैल्यूशन ऑनलाइन टूल्स के माध्यम से हो जाता है। इसके अलावा स्कूल में गूगल फॉर्म्स के माध्यम से क्विज भी आयोजित किए जाते हैं। बच्चों के वॉट्सऐप ग्रुप पर गूगल फॉर्म पर बने क्विज डाले जाते हैं। ‘बोलती किताबें’ सिकेंद्र का इनोवेशन
स्‍कूल में बच्चों को किताबों से पढ़ाया जाता है, लेकिन जिन बच्चों के पास किताबें नहीं हैं या जिन बच्चों को पढ़ने में दिक्कत आती हो, वो किताबों को अपने फोन में ही सुन सकते हैं। सिकेंद्र ने एक लिंक बनाया हुआ है जहां सभी किताबों का ऑडियो बच्चों के टीचर की आवाज में ही मौजूद है। ये लिंक बच्चों के वॉट्सऐप ग्रुप में शेयर किया गया है। हिंदी हो, इंग्लिश हो, EVS की बुक हो- इन तीनों किताबों में से किसी को भी बच्चे ऑनलाइन चैप्टर वाइज सुन सकते हैं, वो भी अपने ही टीचर की आवाज में। इसका नाम बोलती किताबें या टॉकिंग बुक्स रखा है। ‘डिजिटल जू’ से वर्चुअल रिएलिटी के बारे में बताया
सिकेंद्र ने बच्चों को गूगल टूल्स का यूज कर डिजिटल जू यानी चिड़‍ियाघर घुमाया। इसके लिए बच्चों को खाली ग्राउंड में लेकर गए और वहां उन सभी को रिकॉर्ड किया। जब ये रिकॉर्डिंग TV पर दिखाई तो बच्चों ने देखा कि उनके आसपास शेर, चीते जैसे कई जानवर हैं। ये देखकर बच्चों को काफी हैरानी हुई। इससे बच्चों को वर्चुअल रिएलिटी के बारे में पता चला। स्‍कूल में VR बॉक्स और VR हेडसेट भी है, जो टीचर्स ने आपस में पैसा इकट्ठा करके खरीदा है। VR टेक्नोलॉजी के जरिए कई मुश्किल टॉपिक्स जैसे सोलर सिस्टम, प्लैनेट्स आदी बच्चों को पढ़ाए जाते हैं। VR की क्लासेज तीसरी, चौथी और पांचवी क्लास के लिए है। स्कूल में पहली और दूसरी क्लासेज के लिए सिर्फ ऑडियो-विजुअल लर्निंग है, जिसे बच्चे टीवी पर देखते हैं और रिपीट करते हैं। इस तरह उन्हें चीजें जल्दी और आसानी से याद हो जाती हैं। ‘उन्‍हें पढ़ा रहा हूं जिन्‍हें कोई पढ़ाना नहीं चाहता’
सिकेंद्र कहते हैं, ‘जिन बच्चों को हम पढ़ाते हैं, वो ऐसे समुदाय के बच्चे हैं जिनमें से ज्यादातर के माता-पिता लेबर क्लास से आते हैं यानी मजदूर हैं। दिनभर काम करते हैं, तब जाकर रात में उनके घर खाना बनता है। मैं ऐसे बच्चों को पढ़ा रहा हूं जिन्हें कोई पढ़ाना नहीं चाहता, तो मुझे लगा कि उन बच्चों को वो सारी सुविधाएं देनी चाहिए जिसके वो हकदार हैं।’ स्कूल शुरू होने से पहले पूरे गांव का चक्कर लगाते हैं
52 बच्चों के इस स्कूल में फुल अटेंडेंस रहती है। सिकेंद्र का मानना है कि बच्चे स्कूल तभी नहीं आते, जब उनकी पढ़ाई मजेदार न हो, तो सबसे पहले पढ़ाई को मजेदार करने की कोशिश होनी चाहिए। इसके अलावा उनकी एक मुहिम भी है। वो उसी गांव के रहने वाले हैं, जहां के स्‍कूल में पढ़ाते हैं। सिकेंद्र हर दिन स्कूल शुरू होने से पहले पूरे गांव का एक चक्कर लगाते हैं। इससे बच्चे हर दिन समय से स्कूल आते हैं। जो आने में आना-कानी करते हैं या बहाना बनाते हैं, उनके गार्जियन से बात करके स्‍कूल लाते हैं। कभी फूस के छप्पर में चलती थी क्लास
ये स्कूल सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में है जहां ज्यादातर आबादी आदिवासी या दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों की है। 2006 में यहां फूस के छप्पर के नीचे एक स्कूल शुरू किया गया। 2007 में यहां स्कूल बनना शुरू हुआ और इसी साल इस स्कूल के लिए सिकेंद्र कुमार सुमन की नियुक्ति पंचायत शिक्षक के रूप में की गई। स्कूल 2010 में बनकर तैयार हुआ। उस समय इस स्कूल में सिकेंद्र को मिलाकर दो टीचर थे। 2012 में सिकेंद्र को स्कूल का हेडमास्टर बना दिया गया। सिकेंद्र कहते हैं, ‘पहले सुविधाओं के नाम पर यहां सिर्फ तीन कमरे थे। बच्चों के बैठने के लिए बेंच-डेस्क तक नहीं थे। फिर धीरे-धीरे सभी चीजों की व्यवस्था कराई। कभी सरकार से मदद ली तो कभी गांववालों से, तो कभी टीचर्स के सहयोग के भरोसे ही आगे बढ़े। छप्‍पर में चलने वाली पाठशाला और स्‍मार्टक्‍लास है।’ ‘हम लगातार स्‍कूल को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। आज स्‍कूल का हर कमरा इतना आकर्षक है कि बच्चे उनकी दीवारों को देखकर भी कुछ न कुछ सीखते हैं। सभी बच्चे हर दिन पूरी ड्रेस में होते हैं, हर बच्चे के पास आईडी कार्ड, बैग, टाई-बेल्ट सब कुछ है।’ मास्‍साब के अगले एपिसोड में कल देखिए और पढ़‍िए, बिहार की सरकारी टीचर मीनाक्षी की कहानी जिन्‍होंने स्‍कूलों से दूर होती लड़कियों को वापस पढ़ाई से जोड़ा। सीरीज का पहला एपिसोड भी देखें
गांव की दीवारों को ब्‍लैकबोर्ड बनाया, चौराहों को क्‍लासरूम: अटेंडेंस के लिए पेरेंट्स को सम्‍मानित करते हैं माधव सर मध्‍य प्रदेश के दमोह जिले के लिधौरा गांव में हर चौराहे पर बच्‍चे पढ़ते हुए दिखाई देते हैं। किसी भी गली में घुस जाओ तो गली के आखिर में किसी दीवार पर गणित, साइंस के फॉर्मूले लिखे दिखेंगे। बच्‍चे घूमते-फिरते, दौड़ लगाते हुए इन्‍हें पढ़ा करते हैं। गली से गुजरता कोई शख्‍स बच्‍चों को रोकता और दीवार पर लिखा पढ़कर सुनाने को कहता है। बच्‍चे नहीं पढ़ पाते तो उन्‍हें बताता है। पूरा का पूरा गांव ही जैसे क्‍लासरूम बन गया है। पूरी खबर पढ़ें…

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