अररिया जिले के बरहड़ा गांव के रहने वाले भूमेश्वर कारीगर और उनके साथी छठ पूजा के लिए विशेष रूप से बांस की लकड़ी से सूप, दउरा और अन्य पूजा सामग्री बनाते हैं. इन कारीगरों द्वारा बनाए गए सूप और दउरा को बड़े ही सावधानी और मेहनत से तैयार किया जाता है. फिर इन्हें हाट बाजारों में ले जाकर विभिन्न दामों पर बेचा जाता है. सूप और दउरा की बिक्री से न केवल कारीगरों की कमाई होती है, बल्कि छठ पूजा का माहौल भी गांव में जीवंत हो उठता है.
छठ पूजा में बांस की लकड़ी से बने सूप और दउरा का विशेष महत्व है. दरअसल, इस पूजा का मूल उद्देश्य संतान की भलाई और समृद्धि के लिए होता है. बांस को तेजी से बढ़ने वाला पौधा माना जाता है, और यह इस बात का प्रतीक है कि जैसे बांस तेजी से बढ़ता है, वैसे ही संतान की भी प्रगति हो. इसीलिए छठ पूजा में बांस के सूप का प्रयोग किया जाता है, और इसके बिना पूजा को अधूरा माना जाता है.
स्थानीय कारीगरों ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि एक सूप की कीमत 100 रुपये और दउरा की कीमत 200 रुपये है, जबकि कोनिया की कीमत 100 रुपये प्रति पीस है. कारीगरों ने बताया कि पूरे गांव से लगभग 5000 से अधिक सूप और दउरा बिक जाते हैं, जिससे गांव वालों को अच्छी खासी कमाई होती है और वे छठ पूजा को हर्षोल्लास के साथ मना पाते हैं.
एक कारीगर ने बताया कि वह व्यक्तिगत रूप से 200 सूप बेच लेते हैं और छठ पूजा के दौरान यह उनके लिए बढ़िया कमाई का समय होता है. इस प्रकार, बांस के सूप और दउरा न केवल पूजा में धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि गांव के कारीगरों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है.
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FIRST PUBLISHED : November 4, 2024, 22:38 IST