पूर्णिया:- छठ पर्व की शुरुआत आज यानि 5 नवंबर से हो चुकी है, जिसमें पहले दिन को “नहाय-खाय” कहते हैं, जिसमें महिलाएं स्नान कर स्वच्छता का पालन करते हुए अन्न-जल ग्रहण करती हैं. दूसरे दिन “खरना” पर विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें गुड़ की खीर और ठेकुआ शामिल होते हैं. पूर्णिया के पंडित दयानाथ मिश्र कहते हैं कि छठ पर्व कई मान्यताओं से भरा हैं. इसमें भगवान सूर्य देव की आराधना की जाती है. यह पर्व सभी पर्वों में कठिन और शक्तिशाली माना जाता है. इस पर्व को करने से लोगों की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
लोक आस्था का महापर्व छठ कई मान्यताओं से भरा होता है. ऐसे में चाहे वह कार्तिक मास का होने वाला छठ पर्व हो या चैती छठ हो. हालांकि दोनों ही छठ पर्व में भगवान सूर्य देव की उपासना कर भक्त उन्हें सायं काल और प्रातः कालीन अर्ध्य समर्पित करते हैं, जिससे भगवान सूर्य देव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की हर मुरादे पूरी करते हैं. वहीं इस पर्व की शुरुआत नहाय खाय से शुरू होकर प्रातः कालीन अर्ध्य को समाप्त हो जाती है. इस पर्व में कदवा भात के बाद खरना का बहुत महत्व है. कहा जाता है कि खरना का प्रसाद बनाने से लेकर खाने तक कई नियम करने पड़ते हैं.
क्या है छठ पर्व के खरना व्रत की मान्यता
पूर्णिया के पंडित दयानाथ मिश्र लोकल 18 को बताते हैं कि इसके पीछे भी लौकिक मान्यताएं जुड़ी है. महापर्व छठ के दौरान नहाए खाय के बाद होने वाला खरना व्रत बंद कमरे में ही होता है. वहीं खरना के दौरान छठ व्रती के कानों तक कोई आवाज नहीं आनी चाहिए, इसके पीछे की लौकिक मान्यता है. पूर्णिया के पंडित दयानाथ मिश्र कहते हैं कि लोक आस्था का महापर्व पूजा बहुत ही शक्तिशाली होता हैं. हालांकि प्रत्यक्ष सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए और उनसे अपने मनवांछित फल पाने की कामना के लिए लोग छठ महाव्रत करते हैं. यह व्रत करने से लोगों की हर मनोकामनाएं भगवान सूर्य देव जल्द पूर्ण करते हैं. वहीं इस बार का कार्तिक मास का छठ व्रत 5 अक्टूबर नहाय-खाय से शुरू होकर 6 अक्टूबर खरना 7 अक्टूबर सायंकालीन और 8 अक्टूबर प्रातः कालीन अर्ध्य को समाप्त होगा.
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जानें क्या है बंद कमरे में पूजा की मान्यता
पंडित दयानाथ मिश्र कहते हैं कि लौकिक मान्यताओं के अनुसार, छठ व्रत के खरना करने के दौरान व्रती बंद कमरे में पूजा करती हैं और खरना व्रत पूजा करने के दौरान व्रती के कानों तक कोई आवाज नहीं आनी चाहिए. इसका भी खास ख्याल रखा जाता है. हालांकि ऐसा करने से उनकी पूजा भंग नहीं होती और किसी भी जीव-जंतु का उस प्रसाद पर प्रहार नहीं होता. इन्ही चीजों से बचाते हुए व्रती इस नियमों का विशेष पालन करती हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 5, 2024, 12:44 IST
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