अनमोल जीवन : आप अपने आस-परोस में, समाचार पत्र में, TV न्यूज़ में, सोसल मीडिया पर आत्महत्या के बारे में अक्सर सुनते होंगे, 19वी और 20वी सदी में आत्महत्या के मामले बहुत ही तीव्र गति से बढ़े हैं, कहा जाता है कि कमजोर, डरपोक या हाई इमोशन वाले लोग इस तरह की बेवकूफी कर जाते हैं, तो आइए आज इस लेख से आत्महत्या के प्रकार, कारण और उसके उपाय के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं।
आत्महत्या, आत्महत्या करने वाले के जीवन की वैसी स्थिति होती है, जब वह खुद के अनुसार अपने जीवन से हार चुका होता है और उसके लिए जीवन के सारे द्वार, रास्ते और अवसर समाप्त हो गए होते हैं, जबकि वास्तविकता उसके सोच से कुछ अलग ही होता है। कुछ लोग, कर्ज में दबकर, कुछ लोग प्रेम प्रसंग में धोखा खाकर अपनी जीवन को समाप्त कर लेते हैं, कुछ लोग तो अपनी सोच के उस चरम स्तर पर पहुँच जाते हैं जहाँ मानव का अस्तित्व ही निरर्थक लगने लगता है और आत्महत्या कर लेते हैं, इसी तरह के आत्महत्याओं के बारे में आपने तरह-तरह के माध्यमों से देखा और सुना होगा, लेकिन इन सबो में उम्र का फेक्टर कॉमन होता है, ज्यादातर आत्महत्याएँ 15 से 30 वर्ष के बीच के उम्र वाले ही करते हैं।
35 साल की उम्र में 23 सितम्बर 1996 को दक्षिण भारत की प्रसिद्ध अभिनेत्री सिल्क अस्मिता, वर्ष 2019 में कैफे कॉफी डे के मालिक विजी सिदार्थ, 14 जून 2020 को फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत और अमेरिका की एक 36 वर्षीय प्रसिद्ध अभिनेत्री मर्लिन मुनरो ने 1962 में नींद की दवाई की अत्यधिक मात्रा लेकर आत्महत्या कर ली। आखिर क्या कारण है की जीवन से इतने भरे, इतने बड़े बड़े लोग, इतनी बड़ी बड़ी शक्ति आत्महत्या कर लेते हैं जबकि, कम आर्थिक शक्ति वाले लोगों में ये संख्या नगन्य है। आज हमारे समाज में 20 से 25 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनके मन में एक न एक बार यह ख्याल आता है की उसके लिए अब आत्महत्या ही एकमात्र रास्ता बचा है, जबकि वास्तविकता ऐसी नही होती है, मेरा मानना है की हर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है, अगर कायदे से उस समस्या के निष्पादन का रास्ता ढूंढ कर देखा जाय। आत्महत्या का भाव मन में आना एक सामान्य मनोविज्ञान है, इससे घबराने की जरूरत नही है, अगर आपके साथ ऐसी स्थिति आ जाये तो ठंडे दिमाग से उस स्थिति से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढना चाहिए अपने दोस्तों से अपने करीबी रिश्तेदारों से बात करनी चाहिए।
आत्महत्या के कारण और उपाय
19 वी सदी के एक प्रसिद्ध फ़्रांसीसी दार्शनिक और समाजशास्त्री एमिल दुर्खीम ने आत्महत्या के 60 हजार मामले पर रिसर्च किया और उसने एक सिद्धान्त दिया, उनके सिद्धांतों में आत्महत्या, सामाजिक एकीकरण, एनोमी, और समाजीकरण जैसे विषय शामिल थे।
दुर्खीम के मुताबिक, सामाजिक नियंत्रण और बंधनों में कमी की वजह से लोगों का सामाजिक एकीकरण समाप्त हो जाता है, जिससे आत्महत्या की दर बढ़ने लगती है। जिसका प्रमुख कारण एनॉमी हो सकता है और एनोमी की स्थिति तब विकसित होती है जब समाज में तेज़ बदलाव होते हैं, लोग समाजिक और सांस्कृतिक रूप से मान्यता प्राप्त लक्ष्यों तक पहुंच नहीं पाते हैं, समाज में सामाजिक नैतिकता की कमी होती है, समाज में व्यक्तिगत और व्यापक मानकों के बीच अंतर उत्पन्न होने लगता है लोगों में ‘विक्षिप्तता’ और ‘अतृप्त इच्छा’ घर कर जाती है। एनोमी की स्थिति में व्यक्ति, उन लक्ष्यों को पाने के लिए ऐसे साधनों का इस्तेमाल कर सकता है जो समाज के विरुद्ध हों और कभी कभी इसका उदाहरण आत्महत्या के रूप में सामने आता है।
अतः सामाजिक नियंत्रण और बंधनों में वृद्धि कर लोगों के सामाजिक एकीकरण को मजबूती प्रदान कर आत्महत्या को रोका जा सकता है।
आत्महत्या का स्तर बड़े शहरों में अधिक, छोटे शहरों में कम और गांवों में उससे कम देखने को मिलता है। ट्राईबल सोसायटी में तो आत्महत्या का स्तर शून्य है। अगर आप सोचते हैं कि, आत्महत्या का मामला व्यक्ति से है तो आप गलत हैं, दरअसल आत्महत्या का मामला सामाज से है। क्योंकि एक खास समाज एक खास संख्या में आत्महत्या की परिस्थितियां पैदा करता है। इसलिए, ऐसा नही है कि, कमजोर लोग आत्महत्या कर लेते है, ज्यादा इमोशनल लोग आत्महत्या कर लेते हैं। हमारे समाज के द्वारा ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कराई जाती है जो लोगों के आत्महत्या का कारण बनती है। क्योंकि हर समाज में, हर धर्म में, हर समुदाय में कमजोर, डरपोक और इमोशनल लोग हैं तो फिर आत्महत्या की संख्या हर समाज, हर धर्म, हर समुदाय में एक जैसी क्यों नही है। दरअसल जो समाज आत्महत्या की परिस्थितियाँ पैदा करने में आगे है उसमें आत्महत्या का स्तर ऊँचा है।
उदाहरण के लिए एक समाज के एक व्यक्ति के रूप में अपने आप को रख लीजिए और अपने आसपास से मिलने वाले परिस्थितियों पर विचार कीजिये जब आपकी 1. आर्थिक स्थिति खराब हो, 2. आपके खिलाफ कोई केस हो गया हो 3. आप या आपका बच्चा किसी परीक्षा में फेल हो गए हो 4. आपको कोई असाध्य रोग हो गया हो 5. आपके साथ जातिगत मामले हो 6. आपके साथ रंगरूप का मामला हो, 7. आप शारिरिक रूप से अक्षम हो 8 आपके घर में किसी ने या आपने कोई ऐसा काम कर दिया हो जो समाज के लिए अस्वीकार्य हो।
ऐसी कई तरह की परिस्थितियाँ हो सकती है जो आपके साथ उत्पन्न हो सकती है इन परिस्थितियों में आपका समाज, आपके साथ किस तरह का भाव या व्यवहार रखता है। यही भाव या व्यवहार यह तय करता है की आपके समाज में रहने वाले लोगों के आत्महत्या का स्तर कम होगा या ज्यादा।
आत्महत्या के प्रकार
यूथनेसिया : जब कोई व्यक्ति अपने जीवन में किसी असाध्य रोग से पीड़ित हो और लंबे समय से न मर रहा हो ना पीड़ा रहित जीवन जी पा रहा हो, तो वह किसी डॉक्टर से अपनी हत्या (मुक्ति या जीवन मुक्ति) के लिए निवेदन करता है, इसे यूथनेसिया कहते हैं। यूथनेसिया दो तरह के होते हैं : एक्टिव यूथनेसिया और पेसिव यूथनेसिया
एक्टिव यूथनेसिया का अर्थ है कोई रोगी लाइलाज बीमारी से जूझ रहा हो और उसकी इच्छा या स्वीकृति से उसको सीधे जहर का इंजेक्शन देकर मार दिया जाए।
जबकि पैसिव यूथेनेसिया का मतलब है – रोगी गंभीर और न ठीक होने वाली बीमारी से जूझ रहा हो, वह किसी जीवन रक्षक उपकरण के सहारे जीवित हो और अब उसके ठीक होने की कोई उम्मीद न बची हो और डॉक्टर से अपनी हत्या का निवेदन करे वैसी स्थिति में डॉक्टर के द्वारा उसकी इच्छा या स्वीकृति से उसका जीवन रक्षक उपकरण हटा दिए जाएं ताकि उसकी मृत्यु हो जाये। महात्मा गांधी ने भी अपने आश्रम के एक बछड़े को यूथनेसिया दिया था।जब वह बछड़ा गम्भीर बीमारी से न जी पा रहा था न मर रहा था।
अरुणा शानबाग (जो बलात्कार की पीड़िता थी) के 44 साल तक कोमा में रहने के बाद, पिंकी बिरानी नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट से अरुणा शानबाग के लिए यूथनेसिया (गरिमापूर्ण तरीके से मृत्यु का अधिकार) की अपील की और सुप्रीम कोर्ट ने कहा की भारत में एक्टिव यूथनेसिया की इजाजत नही मिल सकती है, हाँ, रेयर एंड रेयरेस्ट मामले में पैसिव यूथनेसिया दिया जा सकता है।
यानी कि, भारत में पैसिव यूथनेसिया की भी इजाजत सुप्रीम कोर्ट से बड़ी ही मुश्किल से मिलती है, जबकि बेल्जियम और स्विट्जरलैंड जैसे देश में एक्टिव यूथनेसिया भी लीगल है, जिसमें बिना दर्द के शांति से मृत्यु दे दी जाती है। स्विट्जरलैंड में तो मूवी ऑन डिमांड के तर्ज पर डेथ ऑन डिमांड का कॉन्सेप्ट भी चलता है।
थॉटफुल सूइसाइड : जब किसी व्यक्ति को यह लगे की वह पर्याप्त जीवन जी लिया है और अब उसे मृत्यु प्राप्त कर लेने चाहिए, ऐसी मृत्यु को थॉटफुल सूइसाइड कहते हैं। 2018 के आसपास ऑस्ट्रेलिया के एक व्यक्ति ने 90 वर्ष की उम्र में अपने परिवार से रजामंदी लेकर ऑस्ट्रेलिया से स्विट्जरलैंड गया और थॉटफुल सूइसाइड ले ली।
धार्मिक सूइसाइड : कुछ लोग किसी धार्मिक या आध्यात्मिक मान्यता के अधीन होकर आत्महत्या कर लेते हैं, इसे धार्मिक सूइसाइड कहते हैं, हालांकि इसे मनोरोग भी कह सकते हैं। 2018 में दिल्ली के बुराड़ी में एक परिवार के 11 सदस्यों ने इस मान्यता के साथ सूइसाइड कर लिया की उसके पूर्वज की आत्मा से उनकी बातचीत होती थी और आत्महत्या के बाद उसके पुर्वज उसे बेहतर और स्वर्णिम नवजीवन देंगे।
अल्ट्रोइस्टिक सूइसाइड : जब कोई व्यक्ति किसी अन्य के हित में अपनी हत्या कर ले तो उसे अल्ट्रोइस्टिक सूइसाइड कहते हैं। उदाहरण : वृत्रासुर और देवराज इंद्र के युद्ध के समय जब इंद्र पराजित होने वाले थे, तब देवराज इंद्र ने ब्रह्मा जी से सलाह ली तो उन्होंने बताया कि वृत्रासुर का वध सिर्फ़ महर्षि दधीचि की हड्डियों से बने वज्र से ही संभव है। देवराज इंद्र ने महर्षि दधीचि से अपनी हड्डियां दान करने की गुज़ारिश की और महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियां दान कर दीं जिससे इंद्र ने बज्र बनाया और वृत्रासुर का वध किया।
इगोइस्टिक सूइसाइड /डिस्ट्रेस में होने वाले सूइसाइड : यह सुसाइड ही हमारे समाज के लिए सबसे चिंता का विषय है जिसमें लोग अपने सोच के उस स्तर पर पहुँच जाते हैं जहां उसे लगता है की अब उसके लिए आत्महत्या ही एकमात्र उपाय बचा है, जो दरअसल उसकी बेबकूफी और भूल होती है। अगर कभी भी आपके मन में इस तरह का भाव या ख्याल आये तो आप ठंडे दिमाग से इससे बाहर निकलने का प्रयास करें क्योंकि आत्महत्या कभी भी किसी समस्या का समाधान नही बल्कि जीवन अंत का विकल्प मात्र है।