खगड़िया सदर : एस० सी० एस० टी० आरक्षण में क्रीमीलेयर के प्रावधानों का विरोध कर रहे आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के भारत बंद का असर खगड़िया सदर प्रखण्ड अन्तर्गत बेला सिमरी पंचायत में भी देखने को मिला। सुबह होते ही एस० सी० समुदाय के लोगों ने आकर खगड़िया बखरी मुख्य पथ को जाम कर भारत बन्द का पुरजोर समर्थन किया और मोदी सरकार मुर्दाबाद, आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति जिन्दाबाद के नारे लागये।
आपको बतादें की बेला सिमरी पंचायत एस० सी० बाहूल्य क्षेत्र है, जिस कारण इस पंचायत में एस० सी० एस० टी० आरक्षण में क्रीमीलेयर के प्रावधानों का विरोध अवश्यम्भावी था। इस विरोध प्रदर्शन में बेला सिमरी पंचायत के अविनाश भास्कर, रामपदारथ पासवान, आजाद पासवान, मोहन कुमार इंदल पासवान, दिलीफ नोनिया, मनोहर पासवान, राजू पासवान, विपिन पासवान, मिल्टन पासवान, देवन पासवान, फुलेन पासवान, अनील पासवान, पवन पासवान, नवल किशोर पासवान, कुंदन पासवान, अनील पासवान, ओपी पासवान, राहुल पासवान, रवि पासवान, कामल कीशोर पासवान, बबलू पासवान, सुमान पासवान, कुंदन पासवान, मुकेश पासवान, इंदल पासवान, फुलटून पासवान, आकाश कुमार, भोला कुमार, शिवम् कुमार, रवि किशन कुमार, प्रेम पासवान, पूर्व मुखिया रविन्द्र पासवान, पूर्व मुखियासुधा पासवान, पंकज पासवान, मुकेश प्पासवान, बिलेन्द्र पासवान, रोशन पासवान, मंटू पासवान, बालवीर पासवान, बिरवल पासवान, छोटू कुमार, अमित कुमार, सुदामा राम, रघुनंदन पासवान, ज्ञानि पासवान, अंशु पासवान, ओम कुमार, मिथुन पासवान, ब्रजेश कुमार, सजन पासवान, सहिंद्र पा आइए जानते हैं कि, क्या है पूरा मामला ? सवान, गुलशन कुमार, गणेश पासवान, जालंधर कुमार व अन्य हजारों लोग शामिल थे।
आइए जानते हैं कि, क्या है पूरा मामला ?
आपको बता दें कि भारत बन्द का आह्वान सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय के खिलाफ लिया गया है, जिसमें कोर्ट की ओर से एस०सी०और एस०टी० श्रेणी में क्रीमिलेयर को आरक्षण देने का निर्णय लिया गया था। दरअसल 1 अगस्त, 2024 को आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिसमें उच्चतम न्यायालय के सात न्यायधीशों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है।
फैसले का मतलब है कि राज्य एससी श्रेणियों के बीच अधिक पिछड़े लोगों की पहचान कर सकते हैं और कोटे के भीतर अलग कोटा के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकते हैं।
यह फैसला भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया था। इसके जरिए 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया। बता दें कि 2004 के निर्णय में कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है।
फैसले के दौरान हुई बहस में अदालत ने एससी-एसटी में क्रीमीलेयर की आवश्यकता पर जोर दिया था। कई जजों ने न्यायालय ने अनुसूचित जातियों के भीतर ‘क्रीमीलेयर’ को अनुसूचित जाति श्रेणियों के लिए निर्धारित आरक्षण लाभों से बाहर रखने की पर राय रखी थी। वर्तमान में, यह व्यवस्था अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर लागू होती है। मुख्य रूप से न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा था कि राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए।
कोर्ट ने कहा है कि जिन लोगों को आरक्षण की आवश्यकता है, उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए। ऐसे में इस फैसले के खिलाफ आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति की ओर से इस निर्णय का विरोध किया जा रहा है और पूरे भारत बंद का ऐलान किया गया है। साथ ही भारत बंद का समर्थन राजनीतिक पार्टी बसपा की ओर से भी किया गया है।
विपक्षी संगठनों के मुताबिक, यह फैसला ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में नौ जजों की पीठ के निर्णय को कमजोर करता है, जिससे भारत में आरक्षण की रूपरेखा स्थापित की गई थी। कुछ संगठनों ने सरकार से इस फैसले को यह कहते हुए खारीज करने की मांग की है कि यह फैसला अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है।
राजनीतिक दलों ने फैसले पर क्या कहा ?
कांग्रेस, बसपा, चिराग पासवान की लोजपा और रामदास अठावले की आरपीआई समेत कई पार्टियों ने कोर्ट के फैसले के कई पहलुओं की आलोचना की। चिराग पासवान ने कहा कि उनकी पार्टी फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी।
देश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे समेत पार्टी नेतृत्व ने उपवर्गीकरण मुद्दे पर बैठक की थी। खरगे के आवास पर हुई बैठक में पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस के कर्नाटक प्रभारी रणदीप सुरजेवाला, महासचिव जयराम रमेश और पार्टी के कानूनी और दलित चेहरे शामिल थे। बैठक के बाद जयराम रमेश ने जाति जनगणना और अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा को हटाने की पार्टी की मांग दोहराई।
इसके अलावा, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि प्रधानमंत्री संसद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर सकते थे और इसे वहां ला सकते थे। उन्होंने कहा था, ‘प्रधानमंत्री कुछ घंटों में विधेयक बना सकते हैं। इसके लिए आपके पास कई दिन बीत जाने के बावजूद समय नहीं है।’
खरगे ने कहा था कि आरक्षण नीति में कोई बदलाव तब तक नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि ‘देश में अस्पृश्यता की प्रथा बनी रहे। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने क्रीमी लेयर का मुद्दा उठाकर अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों के बारे में नहीं सोचा है। उन्होंने कहा था कि विपक्षी दल इस मुद्दे पर एकजुट हैं।
हालांकि, कांग्रेस के दो मुख्यमंत्रियों- कर्नाटक के सिद्धारमैया और तेलंगाना के रेवंत रेड्डी ने स्थानीय समीकरणों के चलते इस फैसले का स्वागत किया था। कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा था कि पार्टी का नजरिया दिल्ली में नेतृत्व द्वारा तय किया जाएगा।
उधर, केंद्रीय मंत्री और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का समर्थन किया है। एनडीए के नेता ने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण में जो जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हैं, उन्हें कोटे में कोटा का लाभ दिया जाना चाहिए।