प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4-5 सितंबर को सिंगापुर का दो दिवसीय दौरा किया। 10 साल के कार्यकाल में यह उनका छठा सिंगापुर दौरा था। यहां पहुंचकर उन्होंने कहा, “सिंगापुर हर विकासशील देश के लिए प्रेरणा है। हम भी भारत में कई सिंगापुर बनाना चाहते हैं।” सिंगापुर 719 वर्ग किमी में फैला एक टापू देश है। ये इतना छोटा है कि भारत में 4,571 सिंगापुर समा सकते हैं। इसके बावजूद सिंगापुर दुनिया के सबसे अमीर देशों में चौथे नंबर पर है। सिंगापुर में प्रति व्यक्ति आय 1.07 लाख अमेरिकी डॉलर (करीब 90 लाख रुपए) है। वहीं, भारत की प्रति व्यक्ति आय महज 2,239 डॉलर (करीब 1 लाख 87 हजार रुपए) है। पर सिंगापुर हमेशा से इतना संपन्न नहीं था। सिंगापुर 1819 से पहले एक वीरान टापू था। लेकिन आज यह दुनिया के सबसे बड़े बिजनेस हब में से एक है। सिंगापुर में 7 हजार से ज्यादा विदेशी कंपनियां हैं, जबकि भारत में केवल 3,291 मल्टी नेशनल कंपनियां हैं। सिंगापुर कैसे वीरान टापू से मल्टी नेशनल कंपनियों को हब बना, मोदी क्यों भारत में कई सिंगापुर बनाना चाहते हैं, इस स्टोरी में सिंगापुर की तरक्की की कहानी… मैप में सिंगापुर को देखिए चीन को जीतने निकले थे भारतीय राजा, सिंगापुर में बस गए सिंगापुर की नेशनल लाइब्रेरी बोर्ड की वेबसाइट के मुताबिक सिंगापुर एक वीरान द्वीप था। ये छठी सदी से बौद्ध साम्राज्य ‘श्रीविजय’ के अधीन था। इस साम्राज्य का आधुनिक मलेशिया, इंडोनिशिया समेत सिंगापुर पर शासन था। तब सिंगापुर को तेमासेक नाम से जाना जाता था। ग्यारहवीं सदी में भारत के चोल साम्राज्य के राजा राजेंद्र चोल ने चीन को जीतने की ठानी। मलय दस्तावजों के मुताबिक राजेंद्र चोल कलिंग के राजा शूलन के साथ मिलकर चीन पर हमला करने निकल गए। शूलन को सिकंदर का वंशज माना जाता था। उन्होंने रास्ते में आने वाले श्रीविजय साम्राज्य पर सबसे पहले हमला बोला और उसे हरा दिया। यह सूचना जब चीन के ‘सोंग राजवंश’ तक पहुंची तो वे डर गए। उन्होंने एक गुप्तचर भेज कर राजेंद्र चोल को यह यकीन दिला दिया कि चीन बहुत दूर है। इतनी दूर सेना लेकर जाना संभव नहीं है। इसके बाद शूलन और चोल ने चीन को जीतने का सपना छोड़ दिया। राजेंद्र चोल वापस घर लौट गए वहीं, राजा शूलन ने श्रीविजय साम्राज्य की राजकुमारी ओनांग किउ से शादी की और वहीं पर बस गए। राजा शुलन के वंशज सांग निला उतामा साल 1299 में तेमासेक द्वीप पर पहुंचे। यहां उन्हें एक शेर दिखाई दिया। उन्होंने पहली बार शेर देखा था। लोगों ने बताया कि ये जंगल का राजा सिंह है। इसी के नाम पर उन्होंने इस द्वीप का नाम ‘सिंहपुर’ यानी कि ‘शेरों का नगर’ रख दिया। यही नाम आगे जाकर सिंगापुर हुआ। शेर सिंगापुर का प्रतीक बन चुका है। सिंगापुर से जुड़ी कई चीजों पर शेर का छवि देखी जा सकती है। सिंगापुर को ठिकाना बनाकर पुर्तगालियों से भिड़े अंग्रेज 15वीं सदी में दुनिया उस दौैर में एंट्री ले चुकी थी, जब यूरोपीय देश व्यापार के लिए नए-नए देशों की खोज करने लगे। पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा 1498 में भारत आया। वहीं, 1492 में इटली के नाविक कोलंबस ने अमेरिका की खोज की। भारत की खोज के बाद पुर्तगाली 16वीं सदी की शुरुआत में हिन्द महासागर पहुंचे। उन्होंने मलक्का स्ट्रेट को अपना ठिकाना बनाया। दरअसल, अरब देशों से लेकर यूरोप और अफ्रीका से लेकर भारत तक अगर किसी भी देश को अपना सामान चीन तक पहुंचाना होता था तो वह दो रास्तों का इस्तेमाल करते थे। मलक्का स्ट्रेट और ट्रूंडा स्ट्रेट। सिंगापुर मलक्का स्ट्रेट के सबसे नजदीक है। पुर्तगालियों ने मलक्का स्ट्रेट से जुड़े इलाके में छोटे-छोटे पोर्ट बनाए ताकि जहाज यहां ठहर सकें। उन्होंने लगभग 100 सालों तक इस इलाके पर कब्जा जमाए रखा। फिर 1603 ईस्वी में डच (नीदरलैंड) ने पुर्तगाल को हराकर इस इलाके पर कब्जा कर लिया। भारत समेत एशिया के कई इलाकों पर कब्जा कर चुके अंग्रेजों ने भी इस इलाके में कब्जा जमाने की कोशिश की, मगर वह डच से सीधा उलझना नहीं चाहते थे। उन्होंने मलक्का स्ट्रेट के नजदीक बसे द्वीप सिंगापुर को अपना ठिकाना बनाया। अंग्रेजों ने 1819 में जोहर के सुल्तान के साथ करार किया और सिंगापुर पर अधिकार हासिल कर लिया। जोहर सिंगापुर के पूर्वी इलाके में है। इसके बाद ब्रिटेन ने सिंगापुर में पोर्ट बनाए। उन्होंने मलक्का स्ट्रेट पर बने पोर्ट्स को टक्कर देने के लिए व्यापारियों को लुभावना ऑफर दिया। चीनी-भारतीय मिले तो 150 से 60 हजार हुई सिंगापुर की आबादी अंग्रेजों ने सिंगापुर के पोर्ट्स पर रूकने वाले जहाजों को टैक्स फ्री कर दिया। इसकी वजह से सिंगापुर में व्यापारी जहाज लेकर ठहरने लगे। एक सुनसान टापू जहां कोई रहना नहीं चाहता था, वहां व्यापार करने भारत, मलेशिया, चीन से लोग आने लगे। 1819 से पहले सिंगापुर की आबादी 150 से भी कम थी लेकिन 1850 तक यहां 60 हजार लोग बस चुके थे। इसमें 25 हजार चीनी लोग थे। वहीं भारतीयों की आबादी लगभग 10 हजार थी। सिंगापुर की आबादी बढ़ने के साथ दिक्कतें भी शुरू होने लगी। इन्हें संभालने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था नहीं थी। सिंगापुर जल्द ही अवैध गतिविधियों का अड्डा बन गया। यहां अलग-अलग देशों से व्यापारी आते थे और अफीम का नशा करते थे। देह व्यापार और जुआ का चलन बढ़ गया। सिंगापुर में इन सबकी वजह से अपराध बढ़ गया। अंग्रेजों ने तब इस पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि उन्हें इस जगह से उतना फायदा नहीं मिल रहा था, जितना उन्होंने सोचा था। इसी बीच 1869 में मिस्र में स्वेज कनाल रूट खुल गया जिसने सिंगापुर की किस्मत बदल दी। नया रूट बन जाने से यूरोपीय देशों ने अब एशिया आने के लिए अफ्रीका का चक्कर लगाना बंद कर दिया। उन्होंने टुंड्रा स्ट्रेट की बजाय मलक्का स्ट्रेट का इस्तेमाल शुरू कर दिया। वे सीधे अरब देशों के रास्ते अरब सागर और फिर बंगाल की खाड़ी से होते हुए साउथ चाइना सी पहुंचने लगे। टूंड्रा स्ट्रेट का इस्तेमाल लगभग बंद हो गया। अब साउथ चाइना सी जाने के लिए मलक्का स्ट्रेट एकमात्र रास्ता बन गया। सिंगापुर को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिला। व्यापार और बढ़ने लगा। आबादी और बढ़ी। इसके बाद ब्रिटेन ने भी सिंगापुर पर ध्यान देना शुरू कर दिया क्योंकि अब यहां से उसे फायदा मिलने लगा था। हालांकि ये सिलसिला ज्यादा समय तक नहीं चला। जापान के 30 हजार सैनिकों ने डेढ़ लाख अंग्रेजों को हराकर जीता सिंगापुर 1939 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर और आर्थिक मंदी की वजह से दुनिया में व्यापार संकट शुरू हो गया था जिस वजह से सिंगापुर की हालत खराब होने लगी। इसी बीच 8 फरवरी 1942 को जापान ने सिंगापुर पर कब्जा कर लिया। सिर्फ 7 दिनों में जापानियों ने इसे जीत लिया। 30 हजार जापानी सैनिकों के आगे ब्रिटेन और उसके सहयोगी देशों के 1 लाख 30 हजार से ज्यादा सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। ब्रिटिश पीएम विंसटन चर्चिल ने इसे ब्रिटेन के इतिहास की सबसे बड़ी हार माना। जापान ने सिंगापुर पर कब्जे के बाद इसका नाम बदलकर स्योनन-टो (दक्षिण का प्रकाश) रख दिया। जापानी सैनिक चीनी लोगों से नफरत करते थे। उन्होंने कई चीनी लोगों को बेवजह मार डाला। मलय (मलेशिया) और भारतीय मूल के लोगों को भी नहीं छोड़ा गया। इसी बीच अमेरिका ने जापान पर एटम बम गिरा दिया। जापान को हार माननी पड़ी। जापानियों ने सिंगापुर छोड़ दिया। एक बार फिर से ब्रिटेन ने सिंगापुर पर कब्जा कर लिया। हालांकि ये वो दौर था जब दुनियाभर में कई देश आजाद हो रहे थे। ऐसे में सिंगापुर पर पहले की तरह अधिकार रखना संभव नहीं था। अंग्रेजों ने सिंगापुर में कई सारे बदलाव किए। प्रशासनिक व्यवस्था पर ध्यान देना शुरू किया। हालांकि, सिंगापुर का बिजनेस बर्बाद हो चुका था। ज्यादातर कंपनियां सिंगापुर छोड़ मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में शिफ्ट हो गई। अंग्रेजों ने सिंगापुर पर अपनी पकड़ ढीली कर दी। सिंगापुर को पहली बार 1959 में सेल्फ रूल का अधिकार मिल गया। हालांकि विदेश नीति पर अभी भी अंग्रेजों का ही पकड़ थी। लेकिन देश को पहला प्रधानमंत्री मिल चुका था। नाम था- ली कुआन यू। सिंगापुर अपनी आजादी छोड़ मलेशिया का राज्य क्यों बना… सिंगापुर की स्थिति खराब हो चुकी थी। कंपनियों पहले ही देश छोड़ जा चुकी थी। प्राकृतिक संपदा भी नहीं थी जिन्हें बेचकर इकोनॉमी चल पाती। यहां पर जो लोग थे उनमें आए दिन झगड़े होते थे। हर समुदाय एक दूसरे को शक की नजर से देखता था। चीनी, मलय, भारतीय सभी अलग-अलग इलाके में रहते थे। इन इलाकों में टकराव आम बात थी। ली कुआन यू को पता था कि सिंगापुर को आजाद रखना इतना आसान नहीं होगा। सिंगापुर में चीनी आबादी बहुत ज्यादा थी इसलिए चीन की नजर उस पर थी। ब्रिटेन जो सिंगापुर की सिक्योरिटी संभाल रहा था, उनके जाते ही आसपास के दूसरे देश उस पर हमला कर सकते थे। इसलिए सिंगापुर ने खुद ही मलेशिया के प्रधानमंत्री मलाया टुंकू अब्दुल रहमान को अपने देश के विलय का प्रस्ताव दिया। सिंगापुर 31 अगस्त 1963 को मलेशिया का एक राज्य बन गया। विलय के बाद इसी साल सिंगापुर में चुनाव हुए जिसमें ली कुआन यू की पीपुल्स एक्शन पार्टी (PAP) को जीत मिली। PAP ने 51 में से 37 सीटों पर कब्जा किया। मलेशिया में सत्ताधारी पार्टी यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गेनाइजेशन (UMNO) उन इलाकों में भी हार गई जहां पर मलय आबादी ज्यादा थी। फिर मलेशिया में 1964 में आम चुनाव हुए। एक साल पहले सिंगापुुर में जीत हासिल करने वाली ली कुआन यू की PAP ने इस चुनाव में शामिल होने की ‘गलती’ कर दी। अब UMNO के नेताओं ने ली कुआन यू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि सिंगापुर में मलय आबादी के साथ भेदभाव होता है। पार्टी के कुछ नेताओं ने रैलियों में ली कुआन यू को ‘कुचल डालो’, ‘मार डालो’ जैसे नारे लगाए। इससे मलय और चीनी आबादी के बीच हिंसा भड़क गई। हालांकि इन दंगों को तुरंत दबा दिया गया लेकिन इससे विलय की गांठ कमजोर पड़ गई थी। मलेशिया ने 23 महीने में छोड़ा सिंगापुर का साथ विवाद तब बढ़ गया जब मलय लोगों को मलेशिया में ज्यादा अधिकार मिल गए। ली कुआन यू ने इसका विरोध किया। इसके चलते उन्हें जेल में डाल दिया गया। इससे विवाद और बढ़ गया। मलेशिया तब प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर था वहीं, सिंगापुर की हालत खस्ता थी। विवादों के बीच मलेशियाई पीएम टुंकू को लगा कि सिंगापुर को साथ रखना घाटे का सौदा है। उन्होंने कुआन यू को जेल से निकालने के साथ ही सिंगापुर को मलेशिया से अलग करने का आदेश दे दिया। 9 अगस्त 1965 को सिंगापुर एक बार फिर अलग देश बन गया। सिंगापुर दुनिया का इकलौता देश है जिसे जबरदस्ती आजादी दी गई। ली क्वान यू को मलेशिया के इस कदम से ऐसा झटका लगा कि वो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रोने लगे। न्यूयॉर्क टाइम्स को 2007 में दिए इंटरव्यू में ली ने इसका जिक्र भी किया था। उन्होंने कहा था- ‘हमारे पास एक राष्ट्र होने के लिए जो सबसे जरूरी चीजें होती हैं, वे नहीं हैं। एक जैसी आबादी नहीं। समान भाषा नहीं, समान संस्कृति नहीं है। हमारे पास कुछ भी नहीं था। इसके बजाए चीनी, मलय और भारतीयों की खिचड़ी थी। इनमें कभी भी दंगे भड़क सकते थे। ये सब ऐसे देश में इकट्ठे हो गए थे, जिसमें कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था। सिंगापुर के बारे में तब समझा जाता था कि इसका अस्तितव है ही नहीं। यह कभी भी खत्म हो सकता है।” ली कुआन ने तानाशाह बनकर बदली सिंगापुर की किस्मत ली कुआन यू को समझ आ गया था कि अब जो करना होगा वह उन्हें खुद ही करना होगा। बाहर से बड़ी समस्या घर की थी। अलग-अलग हो चुके चुके समुदायों को आपस में एकजुट करने के लिए ली कुआन यू की सरकार जमीन अधिग्रहण कानून लाई। 1970 के दशक में जमीन खरीद कर उस पर सरकारी मकान बनवाए गए। लोगों को सस्ते में मकान दिया जाने लगा। जिनके पास पैसे नहीं थे उन्हें किश्तों में घर दिया गया। सिंगापुर की ज्यादातर आबादी झुग्गियों में रहती थी। वे अपनी पुरानी बस्तियां छोड़कर सरकारी बिल्डिंग में रहने लगे। आज भी सिंगापुर की 80% आबादी उन्हीं घरों में रहती है। इसका फायदा ये हुआ कि धर्म और नस्ल के आधार पर अलग-अलग रहने वाले लोग एक साथ रहने लगे। ली कुआन यू ने लोगों को करीब लाने के लिए कई सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू कराए। इसकी वजह से लोगों के बीच दूरियां मिटने लगी। 1965 के बाद से आज तक सिंगापुर में कभी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। पीएम ली, देश में रोजगार पैदा हो इसके लिए काम करने में जुट गए। उन्होंने बिजनेस से जुड़ी कई छूट दी और दुनिया भर की कंपनियों को अपने यहां काम करने के लिए न्योता दिया। कई कंपनियों को 2 साल तक बिना किसी टैक्स बिजनेस करने का ऑफर दिया। ये वो दौर था जब चीन में माओ सांस्कृतिक क्रांति शुरू कर चुके थे। निवेशकों ने चीन से नजदीक बसे हॉन्ग कॉन्ग और ताइवान से पैसा निकाल कर सिंगापुर में इन्वेस्ट करना शुरू किया। एक दशक बाद सिंगापुर में बेरोजगारी दर शून्य पर पहुंच गई थी। सिंगापुर अब तरक्की के रास्ते पर था। लेकिन पीएम कुआन को पता था कि देश को विकास के रास्ते पर बनाए रखने के लिए लोगों का अनुशासन में रहना बहुत जरूरी है। उन्होंने भ्रष्टाचार रोकने के कई कड़े कानून लागू किए। आज भी सिंगापुर में यदि कोई 1 डॉलर की रिश्वत ले तो उसे जेल की सजा मिलती है। इस साल जनवरी में सिंगापुर के भारतवंशी मंत्री सुब्रमण्यम ईश्वरन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो यह पूरी दुनिया में अखबारों की सुर्खियां बन गया। इससे समझा जा सकता है कि सिंगापुर में भ्रष्टाचार का मामला कितना दुर्लभ है। ली कुआन ने नशे के खिलाफ भी कड़े कानून बनाए। उन्हें पता था कि सिंगापुर को बर्बाद करने में नशा भी एक बड़ी वजह रहा है। यही वजह है कि आज भी सिंगापुर में नशे को लेकर सबसे सख्त सजा है। यहां थोड़ी सी मात्रा में भी ड्रग्स रखने वालों को फांसी की सजा मिल जाती है। सिंगापुर में क्लीन कैंपेन शुरू किया गया। च्यूइंगम चबाकर जमीन पर फेंकने, सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीने, शौचालय का फ्लश न करने, रात 10 बजे के बाद शोर मचाने पर सजा होने लगी। शहर साफ रहे इसके लिए सरकार ने प्रतियोगिता शुरू करवाईं। हालांकि सिंगापुर में सबकुछ अच्छा-अच्छा नहीं हो रहा था। देश में सुधार लाने के लिए ली कुआन यू बेहद सख्त रवैया अपना रहे थे। जिसका विरोध भी शुरू होने लगा था। पीएम कुआन ने इसे पूरी निर्ममता के साथ दबाना शुरू किया। उन्होंने प्रेस की आजादी पर लगाम लगा दी। सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों की संपत्ति जब्त कर ली। विरोधियों को कानूनी पचड़े में फंसा कर सालों तक उलझाए रखा। देश में चुनाव होता था मगर जीत ली कुआन की पार्टी को मिलती। ली कुआन एक तनाशाह की तरह बन गए। जब एक इंटरव्यू में उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा- जिन लोगों ने कभी लोकतंत्र जाना ही नहीं उन पर आप लोकतंत्र थोप नहीं सकते। दरअसल, उन्हें लोकतंत्र चाहिए ही नहीं। वे घर, दवा, रोटी और स्कूल चाहते हैं। भारत में कई सिंगापुर क्यों बनाना चाहते हैं मोदी?
भारत की ही तरह सिंगापुर भी अंग्रेजों का गुलाम था। भारत की ही तरह सिंगापुर भी विविधताओं से भरा देश है। धार्मिक, नस्ल और भाषा के तौर पर अलग-अलग बंटा हुआ है। लेकिन सिंगापुर ने इस कमजोरी को अपनी ताकत में बदल दिया है। इस देश के नागरिक अमेरिका और कई यूरोपीय देशों से बेहतर जीवन जीते हैं। साफ-सफाई, हाईक्लास लिविंग, लोगों की सेफ्टी, क्वालिटी ऑफ लाइफ जैसी तमाम वजह हैं जो इस पर मुहर लगाती हैं। सिंगापुर में दो तिहाई आबादी चीनी मूल की थी जो मंदारिन (चाइनीज) बोलती थी। इतनी बड़ी आबादी के बाद भी सिंगापुर चीनी पहचान वाला देश नहीं बना। ली कुआन यू ने सिंगापुर को एक उदार, धर्मनिरपेक्ष और समावेशी देश बनाया। उन्होंने हर धर्म, हर भाषा को समान तवोज्जो दिया। यही वजह है कि सिंगापुर आज इस मुकाम पर है। ये खबर भी पढ़ें… मोदी बोले- पान खाना है तो वाराणसी में निवेश करें: सिंगापुर के बिजनेस लीडर्स से मुलाकात की; कहा- भारत में कई सिंगापुर बनाना चाहता हूं सिंगापुर के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को बिजनेस लीडर्स से मुलाकात की। राउंड-टेबल मीटिंग के दौरान उन्होंने सिंगापुर के व्यापारियों को भारत आने का न्योता दिया। उन्होंने कहा, “भारत में जब भी पान पर चर्चा होती है तो यह वाराणसी के बिना अधूरी होती है।” मोदी ने कहा, “मैं वाराणसी का सांसद हूं। अगर आप पान खाने का आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको वाराणसी में जरूर निवेश करना चाहिए।” पूरी खबर यहां पढ़ें…
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