अखंड सौभाग्य की कामना के साथ बक्सर में सुहागिन महिलाओं व सुयोग्य वर प्राप्ति की इच्छा लिए युवतियों ने हरितालिका तीज का कठोर व्रत किया। इस दौरान उन्होंने विभिन्न शिव मंदिरों में पहुंचकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की और व्रत की कथा सुनी। अखंड सौभाग्य की कामना को लेकर महिलाएं 24 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं। इसमें अन्न तो दूर वह जल भी ग्रहण नहीं करती हैं। प्रसिद्ध रामरेखा घाट के पास स्थित रामेश्वर नाथ मंदिर के पुजारी पंडित त्रिलोकी नाथ तिवारी बताते हैं कि यह व्रत माता पार्वती ने किया था। इसके बाद उन्हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हुए थे। उन्होंने बताया कि पुरानी कथा है कि जब राजा हिमवान अपनी बेटी पार्वती के लिए वर ढूंढ रहे थे, उसी वक्त देवर्षि नारद ने उन्हें भगवान विष्णु से उनकी बेटी का विवाह करने का सुझाव दिया।उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु ही पार्वती के लिए सुयोग्य वर हो सकते है। लेकिन देवी पार्वती भगवान शंकर को मन ही मन अपना पति मान चुकी थी। ऐसे में अपनी सहेलियों के साथ वह घने जंगल में चली गई। वन में वह पूरे भादो माह रही और फिर शुक्ल पक्ष में हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया तिथि को उन्होंने रात्रि जागरण कर भगवान शिव का पूजन-कीर्तन किया। इस दौरान उन्होंने अन्न जल सब त्याग दिया। अगले दिन भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने इच्छित वर देने का वादा किया। तब देवी पार्वती ने उन्हें अपने पति के रूप में मांगा और भगवान ने तथास्तु कह दिया। बाद में राजा हिमवान को भी बेटी की यह इच्छा मालूम पड़ी तो उन्होंने भी इसका सम्मान किया। शिव पार्वती विवाह के लिए हामी भर दी। तभी से यह परंपरा है कि जो भी महिला इस व्रत को करेगी उसका सौभाग्य अखंड रहेगा। महिलाओं को रात्रि जागरण करते हुए यह व्रत करना चाहिए और फिर अगले दिन दान दक्षिणा देते हुए पारण करना चाहिए। व्रत कर रही रीता देवी ने बताया कि अखंड सौभाग्य के लिए उन्होंने निर्जला व्रत किया है। इस दौरान उन्होंने जल और अन्न कुछ भी ग्रहण नहीं किया है। व्रती समीक्षा तिवारी बताती हैं कि यह व्रत अखंड सौभाग्य को देने वाला है। इसे न सिर्फ विवाहित महिलाएं बल्कि अविवाहित युवतियों भी कर सकती हैं। विवाहित महिलाओं को जहां अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं अविवाहित युवतियों को सुयोग्य वर मिलता है।
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